इधर उधर की बात 108 - केंद्रीय विद्यालय — स्कूल नहीं, एक भावना ब्रिगेडियर पी एस घोतड़ा (सेवानिवृत्त)
“ तुम कौन-से स्कूल से हो?”
मेरे कॉलेज के रूममेट ने पूछा — वो दिल्ली के एक नामी स्कूल का छात्र था, जहाँ संगमरमर के फ़र्श थे और विदेशी फर्नीचर।
“केंद्रीय विद्यालय,” मैंने मुस्कराते हुए कहा।
“कौन-सा वाला? तुम लोग तो हर जगह हो!”
“हाँ,” मैंने कहा, “बस यही बात है।”
हम KV वाले किसी एक स्कूल के नहीं होते। हम तो लेह से लेकर कन्याकुमारी तक हर केवी के हैं।
मेरे पिता सेना में थे — मतलब हर दो साल में सामान बाँधो और निकल पड़ो। मेरी पढ़ाई की शुरुआत हुई KV जालंधर से। जहाँ सुबह की प्रार्थना पूरे मैदान में ऐसे गूँजती थी जैसे कोई राष्ट्रोत्सव हो। हवा में प्रार्थना, प्रतिज्ञा और देशभक्ति के गीत घुल जाते थे।
पहले ही दिन माँ ने कहा था, “देख बेटा, असली मैदान, असली लैब, असली पढ़ाई — वो भी बिना मोटी फीस दिए।”
वो बिल्कुल सही थीं। KV ने हमें दी सस्ती लेकिन बेहतरीन शिक्षा — अनुशासन फौज का, और दिल भारत का। हमारे शिक्षक सिर्फ़ पढ़ाने वाले नहीं थे, वे मूल्य और एकरूपता के दीपक थे।
जब तक मैं KV पानागढ़ पहुँचा, तब तक अलविदा कहने की कला में माहिर हो चुका था — वो मीठा-दर्द भरा सिलसिला जिसमें हम पत्र लिखने के अधूरे वादे छोड़ जाते थे।
पर एक नया केवी शुरू करना कभी नया नहीं लगता था — बस उसी प्यारे शो का नया एपिसोड जैसा होता था।
हर स्कूल में विविधता झिलमिलाती थी। कोई कोचीन के नेवी वाले का बेटा, कोई असम के एयरफ़ोर्स अधिकारी की बेटी, कोई DRDO वैज्ञानिक का बेटा, तो कोई आसनसोल रेलवे ड्राइवर का बच्चा। हम किताबों से नहीं, ज़िंदगी से सीखते थे — भाषाएँ, संस्कृतियाँ और अपनापन।
हमारे त्यौहार साझा होते, हमारे चुटकुले कई भाषाओं में चलते, और हमारा लहजा प्यारी उलझन में मिला-जुला होता। सच में, हम थे “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का जीता-जागता उदाहरण।
लेकिन, KV कोई स्वर्ग नहीं था। क्लासें भरी रहतीं, दीवारें पुरानी थीं, और कई कमियाँ। लेकिन इन्हीं कमियों ने हमारे लचीलापन और जज्बे को मजबूत बनाया।
हमारे शिक्षक — जो पूरे देश से चयनित होते — अपनी शालीनता में महान थे। मिस सपना जैसे टीचर रसायनशास्त्र को कविता बना देते, और मिस्टर शाह इतिहास को चलचित्र। सीमित संसाधनों में भी उन्होंने हममें विजेता बनाए।
बोर्ड परीक्षा का वक़्त आते ही पूरा स्कूल अनुशासन और मेहनत की छावनी बन जाता। उत्कृष्टता विकल्प नहीं, आदत थी। केवी के बच्चे शोर नहीं करते — वे काम से पहचान बनाते हैं। एक-एक सुबह की प्रार्थना, एक-एक रात की पढ़ाई — यही हमारी सफलता का मंत्र था।
रीजनल और नेशनल खेल प्रतियोगिताएँ, NCC कैंप, और वार्षिक समारोहों के बीच हमने सीखा कि असली केवी की भावना है “अनुकूलता” — हर माहौल में ढल जाने की ताक़त।
तुम किसी भी शहर के स्कूल में हमें डाल दो, लंच टाइम से पहले हम वहाँ अपने जैसे हो जाते हैं। परिवर्तन से डरना नहीं, उसे सम्मान की तरह पहनना, यही केवी का तरीका था।
हर ट्रांसफ़र ने हमें सिखाया — विनम्रता, साहस, और दोस्ती की कला। हमारी जड़ें मिट्टी में नहीं थीं, वे तो चलने में थीं।
सालों बाद कॉलेज में मुझे उस अदृश्य बंधन की ताक़त का एहसास हुआ। मेरा रूममेट अपने स्कूल के दोस्तों को इक्कठा करने में उलझा था। मैंने मज़ाक में एक पोस्ट डाली — “कोई केवी वाला है क्या? कैंटीन के पास मिलते हैं।”
चार घंटे में 25 लोग आ पहुँचे — KV जयपुर, KV कोयंबटूर, KV शिलॉन्ग, KV नोएडा से। कोई किसी को जानता नहीं था, पर सब एक परिवार जैसे हँसते-बतियाते मिले।
हमने बात की उस यूनिफ़ॉर्म्स की, लंबी प्रार्थनाओं की, लाजवाब समोसे, और उन शिक्षकों की, जिनकी एक नज़र पूरी क्लास को शांत कर देती थी।
रूममेट ने हैरानी से पूछा, “तुम सब एक-दूसरे को जानते हो?”
प्रिय्या, जो KV जयपुर से थी, मुस्कुराई —
“नहीं, पर हम सब एक ही प्रार्थना, एक ही अनुशासन, और एक ही भावना जानते हैं।”
यही है केवी स्पिरिट — शांत लेकिन प्रज्वलित। यह वो विश्वास है कि चाहे जहाँ भी भेज दिया जाए, हम खुद को ढाल लेंगे, मेहनत करेंगे और आगे बढ़ेंगे।
हमारे पास निजी स्कूलों की चमक नहीं थी, पर हमारे पास था संकल्प, कृतज्ञता और खुद को साबित करने की ज़िद।
हमारी भावना की सुगंध मेसूस की जा सकती है हर — कक्षा में, बोर्ड रिज़ल्ट में, रक्षा अकादमियों में, स्टार्टअप्स में, और हर उस केवी विद्यार्थी में जो “भारत का स्वर्णिम गौरव, केंद्रीय विद्यालय लाएगा” सुनकर तन कर खड़ा हो जाता है।
हम स्कूल स्पिरिट में पीछे नहीं — हमने उसे नई परिभाषा दी है।
हम किसी एक केवी के नहीं, सभी केवी के हैं।
क्योंकि एक KVite सिर्फ़ पढ़ता नहीं — वो भारत बनाता है, एक ट्रांसफ़र में एक कदम आगे बढ़कर।
जय हिंद।
मेरे कॉलेज के रूममेट ने पूछा — वो दिल्ली के एक नामी स्कूल का छात्र था, जहाँ संगमरमर के फ़र्श थे और विदेशी फर्नीचर।
“केंद्रीय विद्यालय,” मैंने मुस्कराते हुए कहा।
“कौन-सा वाला? तुम लोग तो हर जगह हो!”
“हाँ,” मैंने कहा, “बस यही बात है।”
हम KV वाले किसी एक स्कूल के नहीं होते। हम तो लेह से लेकर कन्याकुमारी तक हर केवी के हैं।
मेरे पिता सेना में थे — मतलब हर दो साल में सामान बाँधो और निकल पड़ो। मेरी पढ़ाई की शुरुआत हुई KV जालंधर से। जहाँ सुबह की प्रार्थना पूरे मैदान में ऐसे गूँजती थी जैसे कोई राष्ट्रोत्सव हो। हवा में प्रार्थना, प्रतिज्ञा और देशभक्ति के गीत घुल जाते थे।
पहले ही दिन माँ ने कहा था, “देख बेटा, असली मैदान, असली लैब, असली पढ़ाई — वो भी बिना मोटी फीस दिए।”
वो बिल्कुल सही थीं। KV ने हमें दी सस्ती लेकिन बेहतरीन शिक्षा — अनुशासन फौज का, और दिल भारत का। हमारे शिक्षक सिर्फ़ पढ़ाने वाले नहीं थे, वे मूल्य और एकरूपता के दीपक थे।
जब तक मैं KV पानागढ़ पहुँचा, तब तक अलविदा कहने की कला में माहिर हो चुका था — वो मीठा-दर्द भरा सिलसिला जिसमें हम पत्र लिखने के अधूरे वादे छोड़ जाते थे।
पर एक नया केवी शुरू करना कभी नया नहीं लगता था — बस उसी प्यारे शो का नया एपिसोड जैसा होता था।
हर स्कूल में विविधता झिलमिलाती थी। कोई कोचीन के नेवी वाले का बेटा, कोई असम के एयरफ़ोर्स अधिकारी की बेटी, कोई DRDO वैज्ञानिक का बेटा, तो कोई आसनसोल रेलवे ड्राइवर का बच्चा। हम किताबों से नहीं, ज़िंदगी से सीखते थे — भाषाएँ, संस्कृतियाँ और अपनापन।
हमारे त्यौहार साझा होते, हमारे चुटकुले कई भाषाओं में चलते, और हमारा लहजा प्यारी उलझन में मिला-जुला होता। सच में, हम थे “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का जीता-जागता उदाहरण।
लेकिन, KV कोई स्वर्ग नहीं था। क्लासें भरी रहतीं, दीवारें पुरानी थीं, और कई कमियाँ। लेकिन इन्हीं कमियों ने हमारे लचीलापन और जज्बे को मजबूत बनाया।
हमारे शिक्षक — जो पूरे देश से चयनित होते — अपनी शालीनता में महान थे। मिस सपना जैसे टीचर रसायनशास्त्र को कविता बना देते, और मिस्टर शाह इतिहास को चलचित्र। सीमित संसाधनों में भी उन्होंने हममें विजेता बनाए।
बोर्ड परीक्षा का वक़्त आते ही पूरा स्कूल अनुशासन और मेहनत की छावनी बन जाता। उत्कृष्टता विकल्प नहीं, आदत थी। केवी के बच्चे शोर नहीं करते — वे काम से पहचान बनाते हैं। एक-एक सुबह की प्रार्थना, एक-एक रात की पढ़ाई — यही हमारी सफलता का मंत्र था।
रीजनल और नेशनल खेल प्रतियोगिताएँ, NCC कैंप, और वार्षिक समारोहों के बीच हमने सीखा कि असली केवी की भावना है “अनुकूलता” — हर माहौल में ढल जाने की ताक़त।
तुम किसी भी शहर के स्कूल में हमें डाल दो, लंच टाइम से पहले हम वहाँ अपने जैसे हो जाते हैं। परिवर्तन से डरना नहीं, उसे सम्मान की तरह पहनना, यही केवी का तरीका था।
हर ट्रांसफ़र ने हमें सिखाया — विनम्रता, साहस, और दोस्ती की कला। हमारी जड़ें मिट्टी में नहीं थीं, वे तो चलने में थीं।
सालों बाद कॉलेज में मुझे उस अदृश्य बंधन की ताक़त का एहसास हुआ। मेरा रूममेट अपने स्कूल के दोस्तों को इक्कठा करने में उलझा था। मैंने मज़ाक में एक पोस्ट डाली — “कोई केवी वाला है क्या? कैंटीन के पास मिलते हैं।”
चार घंटे में 25 लोग आ पहुँचे — KV जयपुर, KV कोयंबटूर, KV शिलॉन्ग, KV नोएडा से। कोई किसी को जानता नहीं था, पर सब एक परिवार जैसे हँसते-बतियाते मिले।
हमने बात की उस यूनिफ़ॉर्म्स की, लंबी प्रार्थनाओं की, लाजवाब समोसे, और उन शिक्षकों की, जिनकी एक नज़र पूरी क्लास को शांत कर देती थी।
रूममेट ने हैरानी से पूछा, “तुम सब एक-दूसरे को जानते हो?”
प्रिय्या, जो KV जयपुर से थी, मुस्कुराई —
“नहीं, पर हम सब एक ही प्रार्थना, एक ही अनुशासन, और एक ही भावना जानते हैं।”
यही है केवी स्पिरिट — शांत लेकिन प्रज्वलित। यह वो विश्वास है कि चाहे जहाँ भी भेज दिया जाए, हम खुद को ढाल लेंगे, मेहनत करेंगे और आगे बढ़ेंगे।
हमारे पास निजी स्कूलों की चमक नहीं थी, पर हमारे पास था संकल्प, कृतज्ञता और खुद को साबित करने की ज़िद।
हमारी भावना की सुगंध मेसूस की जा सकती है हर — कक्षा में, बोर्ड रिज़ल्ट में, रक्षा अकादमियों में, स्टार्टअप्स में, और हर उस केवी विद्यार्थी में जो “भारत का स्वर्णिम गौरव, केंद्रीय विद्यालय लाएगा” सुनकर तन कर खड़ा हो जाता है।
हम स्कूल स्पिरिट में पीछे नहीं — हमने उसे नई परिभाषा दी है।
हम किसी एक केवी के नहीं, सभी केवी के हैं।
क्योंकि एक KVite सिर्फ़ पढ़ता नहीं — वो भारत बनाता है, एक ट्रांसफ़र में एक कदम आगे बढ़कर।
जय हिंद।
Note:- KVites कृपया अपनी कहानियाँ और अनुभव comments में साझा करें ।
Simply Incredible.
ReplyDeleteLovely.
ReplyDeleteIncredibly wonderful PS. Such wonderful expressions brought memories flooding back. You started with Jalandhar and finished there!
ReplyDeleteOnce a KVite,
ReplyDeleteAlways a Kvite...
The opinion polling Giant..NIELSON. ..a decade back has place KV amongst the best 10 brands in India..
KADAM KADAM BADHAYE JA....
बहोत जिंदादिल KV का वर्णन किया है जो संघ भारत को दर्शता है.
ReplyDeleteहमारे दोनो बेटे KV मे पढे औरं आज अपनी अपनी जिंदगी मे सफल है.
जय हिंद
Started at KV no.2 Agra and after roaming all over India ended KV Punjab lines Meerut cantt
ReplyDeleteDost mujhe nahi pata ki aap kahan se ho par Bharat ka swarnim gaurav sunte hi aaj bhi mera romrom prafullit ho jata hai mein 1982 K V PRC Meerut se hun purani bhawna jagrat karne ke liye aap ka koti koti Dhanyawad
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