इधर उधर की बात 106 - पे परेड ब्रिगेडियर पी एस घोतड़ा (सेवानिवृत )
"क्यों होती हैं ये पे-परेड? जब अफसरों का वेतन बैंक में आ सकता है तो जवानों का क्यों नहीं?"
पहली पे-परेड के बाद जूते उतारते हुए मैंने अपने आप से यह सवाल पूछा। शायद चार घंटों की थकान के कारन जरा जोर से बोल गया।
पड़ोसी टेंट से मेरे कंपनी कमांडर की आवाज़ आई—“ओए गोथरा, इधर आओ।”
एक मिनट में मैं उनके सामने था।
उन्होंने पूछा, “तुम्हें लगता है पे-परेड बेकार है?”
“जी सर, यह बहुत औपचारिक लगती है। एक ही व्यक्ति आपको दो बार सलूट करता है—पहली बार वेतन लेते और साइन करते समय, दूसरी बार नक़द गिनकर सही की रिपोर्ट देते वक़्त। बहुत समय नष्ट होता है। पूरी कंपनी का वेतन बांटने में चार घंटे लग गए,” मैंने कहा।
मेजर नेहरा बोले, “मुझे खुशी है कि तुमने एसओपी के अनुसार भुगतान किया। लेकिन यह परेड सैनिक प्रबंधन के लिए बहुत ज़रूरी है। पच्चीस साल सर्विस वाला जेसीओ भी तुम्हें सलूट करके वेतन लेता है। कमांडिंग ऑफ़िसर के सहाय्यक को भी अपना वेतन लेने के लिए आना पड़ता है। इससे कंपनी में सबको पता चलता है कि कमान किसके हाथ में है। और तीन चार परेडों के बाद आपको अपने सभी सैनिकों के नाम नंबर और चेहरे याद हो जाते हैं।”
मुझे अपने गाँव के एक बुज़ुर्ग फौजी की बात याद आई। उन्होंने कहा था, “काका, सूबेदार हमेशा तुम्हारे और जवानों के बीच पर्दा खड़ा करने की कोशिश करेंगे यह आप पर निर्भर है कि आप उस परदे के पार कैसे देखते हो।”
“सैनिक का आर्मी नंबर दोहराने का क्या मतलब?” मैंने पूछा यह सोचते की वह कहेंगे कि यह एक ड्रिल है और मुझे जल्दी छोड़ देंगे।
उन्होंने तुरंत कहा, “यह तुम्हारे लिए है। बार बार उसका नंबर सुनने से आपको उसका नंबर भी याद हो जायेगा। नंबर से पता चलता है की कौन जवान सीनियर है। जैसे आजकल भर्ती हुए जवान का नंबर 2590 से शुरू होता है। तो 2589 वाला उससे वरिष्ठ होगा। इससे छोटी टुकड़ी का नेता चुनना आसान होता है। जवान कभी अपने जूनियर के अधीन काम नहीं करना चाहता। इसके इलावा वेतन पुस्तिका के पहले पन्ने पर जवान का गाँव, ज़िला, NOK, धर्म, जाति जैसी जानकारी एक नज़र में देख लेनी चाहिए ।”
मैंने फिर पूछा, “जाति जानने से क्या फायदा?”
उन्होंने गम्भीरता से कहा, “महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों में यह सुनिश्चित करना होता है कि एक ही जाति या इलाके के लोगों को ओहदे न दे दिए जाएँ । इससे गुटबाज़ी रोकी जाती है। अलग-अलग जातियों की अपनी रस्में होती हैं। जैसे लिंगायत हिंदू होते हुए भी दफ़न करते हैं। अगर केवल डॉग-टैग देखकर किसी लिंगायत सैनिक का अग्नि द्वारा अंतिम संस्कार कर दिया, तो यह उसकी आस्था का अपमान होगा।”
पहली बार उस शाम मुझे स्नान देर से करने का कोई अफ़सोस नहीं हुआ। मेजर नेहरा ने आगे कहा, “अगर किसी सैनिक के खाते में डेबिट बैलेंस है तो इसका मतलब है कि तुमने समय पर उसकी पार्ट-2 ऑर्डर जारी नहीं की। लीव एडवांस देते वक़्त आपको नोट करलेना चाहिए की उसका रिलीवर आपने चुनना है। वेतन पुस्तिका पर साइन करते वक्त उसके दंड रिकॉर्ड (रेड या ब्लैक इंक एंट्री) देख सकते हो।”
मैंने पूछा, “क्या इससे उस सैनिक के प्रति पक्षपात नहीं होगा?”
उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “हाँ और नहीं। जब गोलियाँ चलती हैं तो मैं हमेशा रेड या ब्लैक इंक एंट्री वाले सैनिक को अपने पास रखता हूँ। ऐसे लोग आत्मसम्मानी होते हैं और कभी निराश नहीं करते। हाँ, बेईमानी या चरित्रहीनता वाले को दूर रखना चाहिए, लेकिन मद्रास रेजिमेंट में ऐसे कम ही मिलते हैं ।”
एक घंटे की इस बातचीत के बाद मुझे समझ आ गया कि IAB-64 (वेतन पुस्तिका) कितना महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है और पे-परेड कंपनी कमांडर के लिए कितनी ज़रूरी प्रक्रिया है।
हम नहाने का समय भूल सीधे अफ़सर मेस की ओर निकल पड़े। रास्ते में मेजर नेहरा ने हँसते हुए कहा, “वैसे पे-परेड का असली मज़ा तो उसके चाय-पकोड़े में है। जब तुम कमान में नहीं रहोगे तो इसे बहुत मिस करोगे।”
कुछ दिन बाद उनकी बात सच साबित हुई। दस दिन की लंबी गश्त पर तीन दिन बाद सिपाही राजू, जिसकी वेतन पुस्तिका में ब्लैक इंक एंट्री का दंड दर्ज था, मेरे लिए खास नाश्ता लाया। उसमें रोटी भी थी।
मैंने हैरानी से पूछा, “बिना बेलन और तवा के रोटी कैसे बनाई?”
राजू ने मुस्कुराते हुए बताया कि उसने दो दिन देखा की में पुलिसाधाम (इमली वाले चावल) अच्छी तरह से नहीं खा रहा। सरदार होने के कारण शायद मुझे वह पसंद न हों इसलिए उसने रोटी बनायीं हैं। रोटी बनाने के लिए उसने सब्ज़ी के डिब्बे का टिन काटकर तवा बनाया, अपनी थाली का पिछला हिस्सा चकला और रम की बोतल बेलन बना ली।
सेवानिवृत्ति के बाद भी मुझे पे-परेड वाली चाय-पकोड़े, लंगर की पूरी, बड़ाखाना का अप्पलम पापड़ और साबूदाना खीर बहुत याद आते हैं। क्या आपको भी?
जय हिंद।
Dear PSG
ReplyDeleteYou touch very sensitive chords of a Soldier.
Respects
Regards
प्रिय मित्र, आपने न केवल हमें पुरानी यादें ताजा कराई बल्कि आज के प्रबंधकों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया है । आपको असीम शुभकामनाएं।।
ReplyDeleteBhooli bisari yaden...I miss the chai pakodas.
ReplyDeleteDear PS,
ReplyDeleteYou hv taken me down the memory lane of pay parade days.Generally scheduled in the afternoon,it taught youngsters a lot.The bonding between the young officer n his jawans always grew stronger.Inquiring about his family gave an insight into the background of your men.Man management at the best.
Nice article buddy.Keep it up.
Bisht
डेल कार्नेगी की किताब का सारांश इस ब्लाग में मिल गया 👌👌👌
ReplyDeleteWhat an emotional writeup Brig PSG, We all really appreciate these fauji drills, hope the generation has some thing more evolutionary and revolutionary methodology to achieve the same aim. Kudos brother 👏
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