इधर उधर की बात 102 – भगवान के हाथ II ब्रिगेडियर पी.एस. घोतड़ा (सेवानिवृत्त)

सर, आप ऑपरेशन टेबल पर इतने शांत कैसे थे?” इंटर्न ने पूछा, जब मुझे ओटी से बाहर निकाला जा रहा था।

मैं मुस्कुराया—“दो वजहें थीं। सच कहूँ तो जब मुझे अंदर ले जाया गया, मेरा मुँह सूख गया था। एक अजीब-सा डर था। लेकिन जैसे ही लेफ्टिनेंट कर्नल एस. शिवकुमार सामने आए और बोले कि वे ऑपरेट करेंगे, डर उड़नछू हो गया। दो दिन पहले ही मैंने उनके सीने पर राष्ट्रीय राइफल्स का बैज देखा था। और जिसने आरआर में सेवा की हो उस पर मैं आँख मूँद कर भरोसा करता हूँ। आखिर मैंने भी दो कार्यकाल राष्ट्रीय राइफल्स में पूरे किए हैं।

फिर मेरी नज़र एनेस्थीसियोलॉजिस्ट पर पड़ी। वो भी लेफ्टिनेंट कर्नल थे। मतलब करीब 13 साल की सर्विस।

इंटर्न उत्सुक होकर झुक गया—“पर सर, इसका आत्मविश्वास से क्या लेना-देना?”

अरे, सब कुछ! 25 साल की सर्विस से कम वाले आर्मी डॉक्टरों ने अपना पहला फील्ड कार्यकाल आरआर या इन्फैंट्री यूनिट्स में गुज़ारा हैजहाँ उन्होंने बहुत मुश्किल हालात देखे हैं। वहाँ वे सिर्फ डॉक्टर नहीं रहते। कभी एडजुटेंट, कभी क्वार्टर मास्टर, तो कभी कंपनी कमांडर तक की भूमिका निभा चुके हैं। उन हालातों में वे सिर्फ सिपाहियों की जान नहीं बचाते थे, बल्कि खुद सैनिक बनकर जीते थे।

उन्होंने फील्ड कंडीशंस में घावों पर टांके लगाए, गंभीर जख़्मियों को स्थिर कर अस्पताल पहुँचाया, सद्भावना मेडिकल और वेटरनरी कैंप लगाए, और उन गाँववालों का इलाज किया जो महीनों नहाना भूल जाते थे। कुछ बाद में 92 बेस हॉस्पिटल में पहुँचेजहाँ सचमुच मौत के जबड़ों से मरीज़ों को खींचकर वापस लाए। और बदले में मिला क्या? लंबे, थकाने वाले कार्यकाल। कोई ढाई-तीन साल लगातार फील्ड में रहा, तीन-तीन कमांडिंग ऑफिसर झेले, छुट्टी के लिए हफ्तों डिविजन हेडक्वार्टर्स से मंज़ूरी का इंतज़ार किया।

फिर भीचेहरे पर मुस्कान रही। हार नहीं मानी। वो खुद सैनिकों से ज़्यादा सैनिक बन गए। उनकी हिम्मत, उनका धैर्य चारों तरफ असर डालता है। आज एमएनएस ऑफिसर और नर्सिंग असिस्टेंट भी उनकी तरह चलते-फिरते हैंऊँचा सिर, तेज़ काम। पूरी आर्मी मेडिकल कॉर्प अब पेशेवर बन चुकी है।

इंटर्न ने माथे पर शिकन डाली—“सर, क्या पहले ऐसा नहीं था?”

नहीं बेटा। सत्तर के दशक में, जब मैं बच्चा था, तस्वीर कुछ और थी। डॉक्टर अपने काम में तो अच्छे थे, मगर नाक पर अहंकार चढ़ा रहता था। एमएनएस ऑफिसर अस्पताल के कॉरिडोर में चिल्लाती मिलती थीं और नर्सिंग असिस्टेंट अक्सर जवानों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। हालात बदले हैंक्योंकि इस पीढ़ी के एएमसी अफसर आग में तपकर निकले हैं।

इतना कहते ही मेरे बदन में कंपकंपी दौड़ गईबेहोशी की दवा उतर रही थी। मॉनिटर की बीपें तेज़ हो गईं। नर्सों ने मोटा कंबल डाल दिया और गर्म हवा फेंकने वाली पाइप कंबल के अंदर डाल दी। धीरे-धीरे शरीर को आराम मिला। वही सुकून जैसे माँ की गोद में सिर रखकर सो जाना।

पंद्रह मिनट बाद इंटर्न लौटा—“सर, आप ठीक हैं?”

हाँ,” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

लेकिन सर, आपने सिर्फ एक वजह बताई। दूसरी क्या थी?”

ओह, दूसरी वजह मेरी किडनी स्टोन की तकलीफ़ कनाडा में शुरू हुई थी। वहाँ अर्जेंट केयर गया। तीन घंटे बाद एक जनरल फिज़िशियन ने मुझे देखा। पाँच घंटे बाद सीटी स्कैन हुआ। निदान सही था, लेकिन पेनकिलर भी पाँच घंटे बाद मिला। फिर बोलेस्पेशलिस्ट को दिखाओ। और वो हफ़्ते-दस दिन बाद मिलेगा। मैंने ट्रिप बीच में ही छोड़ दीइतनी अनिश्चितता में जीना मुश्किल था।

और यहाँ इंडिया में? डॉक्टर से मिलने के एक घंटे के भीतर इलाज शुरू हो गया। बेटा, यही दूसरी वजह थी। East or West India is the Best

इतना कहकर मैंने धीरे से फुसफुसाया—“Thank you, AMC


 

Comments

Popular posts from this blog

IDHAR UDHAR KI BAAT 80 (The Maha Kumbh and CNP) Brig PS Gothra (Retd)

IDHAR UDHAR KI BAAT 17- (POSITION OF STRENGTH) Brig PS Gothra (Retd)

IDHAR UDHAR KI BAAT 102 - UNSUNG HEROS - Brig PS Gothra (Retd)