इधर उधर की बात 103 – पैसे वारना ब्रिगेडियर पी.एस. घोतड़ा (सेवानिवृत्त)
“कभी देखा है पैसे वारने की रस्म? नवजात या नवविवाहित के सिर पर नोट घुमा कर गरीबों को देने की?” इसका असली भाव आशीर्वाद देना है। सरल और पवित्र।
पर फिर आती है बात पंजाबी फुकरेपन की। हम क्या करते हैं? सिर्फ़ घुमाते नहीं। नोटों की बारिश कर तमाशा बना देते हैं। सिर्फ़ ये जताने के लिए कि “अस्सी बड़े ग्रेट हां” ।
मैंने यह कभी नहीं किया। भले ही लोग पीठ पीछे हँसे और कंजूस कहें। क्यों? क्योंकि नोट पैरों के नीचे रौंदे जाएँ, ये मुझे अपमान लगता है। पैसे का अपमान। उस देश का अपमान जिसका चेहरा उस नोट पर छपा है।
एक महीना पहले मैं चिंता में था। एक नज़दीकी रिश्तेदार की शादी थी। लोग उम्मीद करेंगे कि मैं भी अपनी ठाठ दिखाऊँ। अब इस नोट बरसाने के चक्कर को कैसे संभालूँ? कनाडाई डॉलर फेंकना बहुत महँगा काम है। ख़ासकर जब कमाई रुपयों में हो। भारतीय रुपये फेंकना? कतई नहीं । वो तो बेइज़्ज़ती होगी। फिर किसी ने मज़ाक में कहा: “पाकिस्तानी करेंसी क्यों नहीं?”
और देखो कमाल, मुझे ताज़ा पाकिस्तानी नोटों की गड्डी मिल गई। ओह, कैसी शरारत! सोचो, लोग नाचते-गाते उन नोटों को कुचल रहे हैं, उठाने की भी परवाह नहीं। मेरा बटुआ सुरक्षित, मेरा अहं संतुष्ट। और ऊपर से विनिमय दर ? मेरे हक़ में मज़ेदार।
लेकिन फिर—भीतर से आवाज़ आई: “सच में? क्या हासिल कर रहे हो? कोई जंग जीत ली? कोई तर्क सिद्ध कर लिया? या सिर्फ़ छोटी सोच को चतुराई का नाम दे रहे हो?”
चुभ गया। सच था। अगर भीड़ ने ध्यान ही न दिया, तो मेरा “ग्रैंड जेस्चर” कुछ नहीं रह जाएगा। आशीर्वाद भी गायब।
फिर बाहरी मन बोला: “अरे, दिल को सुकून तो मिलेगा।”
पर दिमाग़ ने तमाचा मारा: “ये व्यर्थ है। वैसा ही जैसे आईटी सेल का बेकार शोर।”
एक और सवाल उठा: “तो तुम झंडा जलाने वालों, दूतावास के सामने देश का अपमान करने वालों की कतार में लगना चाहते हो? उसी तरह का मूर्ख दिखना चाहते हो?”
“नहीं। बिलकुल नहीं ।”
याद आया : पिता जी 1971 युद्ध के बाद एक बलूच सैनिक की बेल्ट का बक्कल (buckle) घर लाए थे। पिता जी ने उसे लकड़ी के स्टैंड पर उल्टा माउंट कर ड्राइंग रूम में गर्व से सजाया था। पैरों के नीचे कुचला नहीं गया, अपमानित नहीं किया गया। बाद में आर्मी मेस में भी दुश्मन के झंडे देखे—उल्टे माउंट किए हुए, विजय का प्रतीक माने गए लेकिन कभी ज़मीन पर नहीं फेंके गए।
अंत में मैंने पाकिस्तानी नोटों की गड्डी रख ली। मज़ाक के लिए नहीं। बल्कि याद दिलाने के लिए। अपनी छोटी सोच की। अपने लालच की।
और कनाडाई शादी में? सोचो ज़रा। नोट वाकई बरसाए गए। लेकिन कनाडाई डॉलर नहीं। सबने अमेरिकी एक-एक डॉलर के नोट बरसाए! असल में कनाडा में अब वन-डॉलर बिल है ही नहीं—सबसे छोटा नोट पाँच डॉलर का है। कनाडाई भी समझदार निकले—पाँच डॉलर क्यों गँवाएँ। इसी तरह चटक कनाडियाई गुरूद्वारे में भी एक अमेरिकी डॉलर डालते हैं। ताकि लोग गुल्लक में सिक्का गिरने की आवाज़ न सुन लें। आखिर भगवान को तो आपकी श्रद्धा का पता है। दिखावा तो ठीक होना चाहिए।
जय हिन्द.
You touched a very routine incident . We donit even give a second thought, but tou covered it in a lucid manner . Thoughts were the same which come to our mind, as if we are thinking through your mind. Very smooth flow, keep up the series., good writing.
ReplyDeleteA real touch on this topic,it does happen in most of the marriages
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