इधर-उधर की बात 85– पवित्र पेनशन -ब्रिगेडियर पी एस घोतड़ा (सेवानिवृत)

" हम रहेंगे कहाँ ?" मैंने पूछा। " सर , वहाँ कोई फौजी मेस नहीं है , मैंने छोटे से होटल में कमरा बुक किया है। हमें अपनी जेब से पैसे देने होंगे , रिइम्बर्स नहीं होगा ," कर्नल थापा ने जवाब दिया । " मैंने उसे तिरछी नज़र से देखा , क्योंकि सरकारी काम पर अपना खर्चा करना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। हम उसकी कार में एक बोर्ड ऑफ़ ऑफिसर्स करने के लिए टेम्पेरोरी ड्यूटी पर जा रहे थे। " कम से कम आराम तो रहेगा , सर ," उसने आशावादी लहजे में कहा। " लेकिन तुम्हें पता है , कोई यह भी कह सकता है कि हमें होटल में रहते वक़्त सूटकेस भर के पैसे दिए गए थे। तुम्हें विकल्प तलाशने चाहिए थे — कोई सरकारी विश्राम गृह , या फिर सराय ही देख लेते , " मैंने आधे मज़ाक और आधे गंभीरता से कहा कुछ सेकंड तक वह चुप रहा। उसके चेहरे पर क्षणिक झुंझलाहट की झलक दिखाई दी। दो मिनट बाद , वो जोर से हँसने लगा। मैंने पूछा , “ क्या हुआ ?” “ वो ट्रक के पीछे लिखा पढ़िए। ” मैंने ...